कुछ तो कोई बात थी !

मंद मंद मुस्काती थी, कुछ तो कोई बात थी
अनजाने राह पर नज़रे टकरा जाया करती थी।

उन घुंगरेले लट्टो में, कुछ तो कोई बात थी
उंगलियां उन लट्टो में यूं ही नही उलझ जाया करती थी।

दूर थी , मजबूर थी, कुछ तो कोई बात थी
पर पास होने का आभास, हवाओं से दे जाया करती थी।

चुप देखती, पलके भी न झुकती, कुछ तो कोई बात थी
चुप रह कर भी सारी बाते अंतर हृदय से कह जाया करती थी।

मिलन को व्याकुल, स्पर्स को आकुल थी, कुछ तो कोई बात थी
बंधनों में बंद विवश और लाचार थी, मन को समझा, जी को बुझा ले जाया करती थी।

वो हर पल मेरे साथ थी, उसमे यही तो अनोखी बात थी
आज भी हर पल हृदय के संग्रहालय में हो गुम, है वो विचरती।

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