“जीवन का सफर”

काश! जीवन की किताब खोलता
कुछ पन्ने पीछे कर मिटा हो लेता।

शायद! वो पन्ने ही कुछ और पन्ने जोड़े
मन में विचारों की लौ भर कुछ ऐसे थोड़े।

सादे पन्नो को रंगीन छोड़ने, आगे बढ़ जाता रंग खोजने
सांसों में आहों को भर, निकल जाता रूख को मोड़ने।

काश! जीवन की किताब खोलता अंधकार के थे जो हिस्से
बातों और यादों से भर देता उनमें कुछ मोहक से किस्से।

शायद! उस अंधकार में, था इतना तो वो प्रकाश
जो अंधेरे को उजियारे की लौ को दे जाता एक छोटी सी आश।

जीवन के पन्ने सब भर जाएंगे सारी बाते धारी ही रह जाएंगे
और अंधकार भी उजियारे से सफर की रोशनी में छुप धुंधली हो जाएंगे।

सफर लंबा हो, ठोकरे तो छोटा सा हिस्सा है
चलते जाना पार कर, दुनिया में बन जाना किस्सा है।

Leave a comment