“यादें”

यादें भूल जाया करती है शायद!
कुछ स्याही मिटाएं न मिटे लिखावट की

मन जल सा हो जाया करता
जल भी इस्थिर न पाया करता।

पंछियों सी थी यादें सारी
अब चहचहाना भी लगे खयाली।

दूर कही से हवाएं चलती
कुछ यादों का किस्सा वो कहती।

समेट लेता सब मन की दरिया में
गर वो इस्मिती की उफान न लाती दरिया में।

वक्त गुजर जाता, मन वही रह जाता
बस तू न था, पर तो छाप कई था।

हां यादें भूल जाया करती है शायद!
जब चित मन हो जाता अवचेतन।

शुभ~

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