बचपन में सगुन देने में आना कानी करने से युआकाल में कभी कुछ ना दे पाने का एहसास है ये राखी।
राखी एक डोर का त्योहार नहीं, जन्म से मरण तक के अटूट रिश्ते का एहसाह हैं ये राखी।
बहनों से हाथो का श्रृंगार अब अधूरा होता चला गया; समय,दूरियां मजबूरियां, डाक का इंतजार और कलाईयों का खुद से श्रृंगार तुम्हारे होने का एहसास दे जाती ये राखी।
हा याद आते है सारे गुजरे पल हर साल हर छड़; यादों को समेटे, मंद मुस्काते आश लगाए खो से जाते की अगले बरस बहना ही बाधेगी ये राखी।
~शुभ